इंसानों की वजह से 6,000 साल पहले पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में हुआ एक बड़ा बदलाव
मानव प्रभुत्व का एक नया युग: एन्थ्रोपोसीन
300 मिलियन से भी ज़्यादा सालों से, पृथ्वी पर पौधों और जानवरों का वितरण एक जैसे तौर-तरीकों पर चल रहा था। यानी, एक खास तरह की जगहों पर एक साथ कई तरह की प्रजातियाँ मिल जाती थीं। लेकिन, नेचर नाम की जर्नल में छपे एक नए रिसर्च में पता चला है कि ये तौर-तरीके करीब 6,000 साल पहले अचानक से काफ़ी बदल गए। और, ये बदलाव इंसानों में खेती-किसानी के बढ़ते चलन और बढ़ती आबादी के साथ मेल खाते हैं।
रिसर्च के नतीजे
शोधकर्ताओं ने अलग-अलग महाद्वीपों की 80 आबादी से लगभग 360,000 जोड़े जीवों की जाँची-परख की। उन्होंने देखा कि 6,000 साल पहले, 64% जीवों के जोड़ों में आपस में काफ़ी रिश्ता था, यानी कई बार उन्हें एक साथ एक ही जगह पर पाया जाता था। लेकिन, 6,000 साल बाद, ये संख्या घटकर 37% रह गई। इससे पता चलता है कि अलग-अलग प्रजातियाँ अब पहले की अपेक्षा ज़्यादा बँट गई हैं या फिर उनके एक साथ पाए जाने की उम्मीद कम हो गई है।
इंसानों की भूमिका
रिसर्च करने वालों ने अभी ये पक्के तौर पर नहीं बताया है कि आखिर ये बदलाव क्यों हुआ, लेकिन उन्होंने इसके पीछे जलवायु परिवर्तन जैसे दूसरे संभावित कारणों को ख़ारिज कर दिया है। उनका मानना है कि इंसानों का किया-कराया, जैसे रहने की जगहों को खत्म करना और उन्हें छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट देना, इसके सबसे बड़े कारण हो सकते हैं।
भविष्य के लिए मायने
प्रजातियों के वितरण में हुए इस बदलाव का असर पृथ्वी पर होने वाले जीवन के भविष्य पर काफ़ी ज़्यादा पड़ने वाला है। अब प्रजातियों के आपस में जुड़ाव कम हो गया है, इसलिए उनका खत्म होना और मुश्किल हो जाएगा। इससे ये भी पता करना मुश्किल हो जाएगा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अलग-अलग प्रजातियाँ खुद को कैसे ढालेंगी।
विकास का एक नया दौर?
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रजातियों के वितरण में हुआ ये बदलाव इस बात का संकेत हो सकता है कि हम विकास के एक नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। उनका तर्क है कि अब इंसान पृथ्वी पर सबसे प्रभुत्वशाली प्रजाति बन गए हैं और इसका असर पूरे जीवमंडल पर पड़ रहा है। ये असर कई रूपों में दिखाई देता है, जैसे पौधों और जानवरों का एक जैसा होना, पृथ्वी के सिस्टम में बहुत सारी नई ऊर्जा का आना और इंसानों के आपसी व्यवहार में तकनीक का बढ़ता इस्तेमाल।
दीर्घकालिक प्रभाव
अगर लियोन्स के नतीजों को दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी जीवाश्म रिकॉर्ड में दोहराया जा सका, तो इस बात का सबूत मिलेगा कि पृथ्वी पर जीवन के विकास पर इंसानों का वैश्विक प्रभाव हज़ारों साल पहले ही शुरू हो गया था। एन्थ्रोपोसीन को समझने और ग्रह पर इंसानी गतिविधियों के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के तरीके में ये खोज काफ़ी क्रांतिकारी साबित होगी।
नकारात्मक परिणामों को रोकना
ये ध्यान देना ज़रूरी है कि प्रजातियों के वितरण में हो रहे बदलाव का मतलब ये नहीं है कि सभी प्रजातियाँ ख़त्म हो जाएँगी। लेकिन, इससे ये साफ़ हो जाता है कि जैव विविधता की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है और पर्यावरण पर पड़ने वाले इंसानी कामों के बुरे असर को कम करना होगा।
सोचने लायक सवाल
- कैसे हम प्रजातियों के वितरण में हो रहे बदलाव को उसके नकारात्मक परिणामों से रोक सकते हैं?
- जीवमंडल पर मानवीय प्रभाव के दीर्घकालिक परिणाम क्या होंगे?
- क्या हम विकास के एक नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं?
- पृथ्वी पर जीवन का भविष्य क्या है?